जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ किया ।
तुमको अरपौं भाव भगतिधर, जै जै जै शिव रमनि पिया ।।
संभव जिन के चरन चरचतें, सब आकुलता मिट जावे ।
निज निधि ज्ञान दरश सुख वीरज, निराबाध भविजन पावे ।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।3।
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जलफल सब सज्जे, बाजत बज्जै, गुनगनरज्जे मनमज्जे ।तुअ पदजुगमज्जै सज्जन जज्जै, ते भवभज्जै निजकज्जै ।।श्री…
शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरु ले मन हर्षाय, दीप धुप फल अर्घ सुलेकर,…
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